रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बुधवार को अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा की। बाजार की उम्मीदों के मुताबिक, RBI ने रेपो रेट में 25 आधार अंकों की वृद्धि की है। इस वृद्धि के साथ, रेपो रेट अब 6.50% हो गया है।
RBI इस वृद्धि के तीन मुख्य कारण बताता है:
महंगाई RBI के लिए प्रमुख चिंता का विषय रही है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति फरवरी में 6.58% रही, जो RBI के लक्ष्य 4% से अधिक है। RBI को उम्मीद है कि दरों में वृद्धि से मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब लाने में मदद मिलेगी।
हालांकि, RBI आर्थिक विकास को भी समर्थन देना चाह रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में धीमी गति से बढ़ रही है, और RBI का मानना है कि दरों में वृद्धि से विकास को गति देने में मदद मिलेगी।
अंत में, RBI वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना चाहता है। दरों में वृद्धि से देश से पूंजी बहिर्वाह को रोकने में मदद मिलेगी। इससे रुपये का मूल्य स्थिर रखने में भी मदद मिलेगी।
RBI की दर वृद्धि व्यवसायों और व्यक्तियों दोनों को प्रभावित करेगी।
व्यवसायों को ऋण लेने के लिए अधिक भुगतान करना होगा, जिससे उनके लिए निवेश करना और विस्तार करना अधिक महंगा हो जाएगा। इससे आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
व्यक्तियों को भी ऋण लेने के लिए अधिक भुगतान करना होगा, जिससे कार, घर या अन्य बड़ी वस्तुओं को खरीदना उनके लिए अधिक महंगा हो जाएगा। इससे उपभोक्ता खर्च पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि, RBI की दर वृद्धि से बचतकर्ताओं को भी फायदा होगा। अब उन्हें अपने जमा पर अधिक ब्याज मिलेगा। इससे बचत को प्रोत्साहित करने और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
कुल मिलाकर, RBI की दर वृद्धि एक सकारात्मक कदम है। इससे महंगाई पर अंकुश लगाने, आर्थिक विकास का समर्थन करने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। हालांकि, दर वृद्धि का व्यवसायों और व्यक्तियों दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।