Why Diwali lights had to slow this year, her brothers try to understand my political pundit, so perhaps that is why Narendra Modi to know - drawing millions of people are listening to their parties. They have been a rally in Patna in the morning of the bombings, the first blast was so long ago at the railway station, there are still people gathered at Gandhi Maidan.Then it was reported that around the grounds, are closer to the stage bang, then people are sitting, why when I posed this question to myself, so I missed the point, which I had said an elderly Kanpurwasi. When I asked her why she liked Modi, he said, because we expect that if Modi becomes Prime Minister, then UP will work to develop, as he has done in Gujarat. I had heard similar things in the villages of Rajasthan. Sonia who ruined the economy - the government of Manmohan Singh's rule, the people fully realize what is happening. महंगे सिर्फ प्याज नहीं हुए हैं, महंगा हो गया है रोजमर्रा के जीवन का सारा सामान इतना कि दिवाली की जो हलचल, जो तामझाम हर साल दिखता है बाजारों में, इस साल नहीं दिखा। इस निराशा का कारण जानने के बदले राजनीतिक पंडित बेकार मुद्दों के remain engaged in the analysis. Every other day against Modi to devise a new fault them.So last week so we have plenty of arguing analysis of the speech of the Chief Minister of Bihar, which he had made fun of Modi. Know so little about the history Modi, Nitish Kumar said that Chandragupta Gupta dynasty, he said, were of the Chandragupta Maurya dynasty. सिकंदर कभी गंगा नदी तक पहुंचे ही नहीं थे, पर मोदी को यह भी नहीं मालूम और न ही उनको मालूम है कि तक्षशिला का प्राचीन विश्वविद्यालय बिहार का कभी हिस्सा नहीं था। नीतीश कुमार के इस भाषण का खूब विश्लेषण हुआ और इसके फौरने बाद मोदी ने About Sardar Vallabhbhai Patel told that if they are made in front of Dr Manmohan Singh, India's first Prime Minister of this country, "the picture is different, different levels of destiny." It did not say so in clear terms the Prime Minister, his ministers and Congress spokespersons and we have said this in clear terms, the brand new political pundit issue be in a analysis. was Tuneless the debate Patel's it at the legacy of the We all have equal right, as is Gandhi's legacy.Congress spokesman, who are now trying to adopt Patel, are forgetting that the same political party might have worked for decades in the Dwarf Paladin, see the stature of the Nehru family. If we waste so much time, are not wasted on irrelevant issues last days, so maybe understand due to the increasing popularity of Modi. In my eyes, the biggest reason is that Modi, in his meetings on issues which may arise rays of hope in this climate of despair. Leader of the Congress of poverty still just talk, talk Modi wealth and prosperity. ऐसी बातें करके उन्होंने जनता के सामने एक नया आर्थिक सपना रखने का काम किया है, जो बहुत सुनहरा लगता है लोगों को। मोदी के विरोधियों ने कोशिश की है उनको सांप्रदायिकता के काले रंग में रंग डालने की, लेकिन अभी तक यह रंग उन पर टिका does not. We should think that so discredited political pundits, politicians accused of being Hitler, why not tick charges are being fascist. But we are embroiled in useless things, no meaning to the people.
इस साल दिवाली की रोशनियां धीमी क्यों पड़ीं, उसको अगर मेरे राजनीतिक पंडित बंधु समझने की कोशिश करते, तो शायद मालूम हो जाता कि क्यों नरेंद्र मोदी को देखने-सुनने लाखों लोग जुट रहे हैं उनके जलसों में। पटना में उनकी रैली में सुबह से खबर रही होगी विस्फोटों की, क्योंकि पहला धमाका तो बहुत पहले हुआ था रेलवे स्टेशन पर, फिर भी लोग गांधी मैदान में इकट्ठा होते रहे। फिर खबर मिली कि मैदान के आसपास, मंच के करीब हो रहे हैं धमाके, तब भी लोग बैठे रहे, क्यों?
मैंने अपने आप से जब यह सवाल किया, तो याद आई वह बात, जो मुझे एक बुजुर्ग कानपुरवासी ने कही थी। मैंने उनसे पूछा कि वह मोदी को पसंद क्यों करते हैं, तो उन्होंने कहा, क्योंकि हमको उम्मीद है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उत्तर प्रदेश में विकास लाने का काम करेंगे, जैसे गुजरात में उन्होंने किया है। ऐसी ही बातें मैंने राजस्थान के गांवों में सुनी थी। अर्थव्यवस्था का जो कबाड़ा सोनिया-मनमोहन की सरकार के शासन काल में हुआ है, उसका एहसास लोगों को पूरी तरह से हो रहा है अब। महंगे सिर्फ प्याज नहीं हुए हैं, महंगा हो गया है रोजमर्रा के जीवन का सारा सामान इतना कि दिवाली की जो हलचल, जो तामझाम हर साल दिखता है बाजारों में, इस साल नहीं दिखा।
इस निराशा का कारण जानने के बदले राजनीतिक पंडित बेकार मुद्दों के विश्लेषण में लगे रहते हैं। मोदी के विरोधी हर दूसरे दिन एक नया नुक्स उनमें ढूंढ निकालते हैं। सो पिछले सप्ताह पहले तो हम पंडितों ने बिहार के मुख्यमंत्री के उस भाषण का खूब विश्लेषण किया, जिसमें उन्होंने मोदी का मजाक उड़ाया था। मोदी को इतिहास के बारे में इतना कम पता है, नीतीश कुमार ने कहा कि चंद्रगुप्त का वंश उन्होंने गुप्त बताया, जबकि चंद्रगुप्त मौर्य वंश के थे। सिकंदर कभी गंगा नदी तक पहुंचे ही नहीं थे, पर मोदी को यह भी नहीं मालूम और न ही उनको मालूम है कि तक्षशिला का प्राचीन विश्वविद्यालय बिहार का कभी हिस्सा नहीं था।
नीतीश कुमार के इस भाषण का खूब विश्लेषण हुआ और इसके फौरने बाद मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में कह दिया डॉ. मनमोहन सिंह के सामने कि अगर वह बने होते, भारत के पहले प्रधानमंत्री, तो इस देश की 'तस्वीर अलग होती, तकदीर भी अलग होती।' अपने प्रिय डॉ. साहिब वैसे तो ज्यादा बोलना पसंद नहीं करते हैं, पर यह बात सुनकर कैसे चुप रहते, सो सुना दिया मोदी को कि सरदार सेक्यूलर थे यानी आप जैसे सांप्रदायिक राजनेता को उनके बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं। स्पष्ट शब्दों में तो नहीं कही प्रधानमंत्री जी ने यह बात, पर उनके मंत्रियों और कांग्रेस प्रवक्ताओं ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में यह बात कही और हम राजनीतिक पंडित लग गए इस नए मुद्दे का विश्लेषण करने में।
बेमतलब थी सारी बहस, क्योंकि पटेल की विरासत पर हम सबका उतना ही हक है, जितना गांधी जी के विरासत पर है। कांग्रेस के प्रवक्ता, जो आजकल सरदार पटेल को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, भूल रहे हैं शायद कि इसी राजनीतिक दल ने सरदार को बौना करने का काम किया है दशकों से, ताकि नेहरू परिवार का कद ऊंचा दिखे।
इतना वक्त अगर हम बेकार, बेमतलब मुद्दों पर बर्बाद न किए होते पिछले दिनों, तो शायद समझ पाते मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण। मेरी नजरों में, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मोदी ने अपनी सभाओं में वे मुद्दे उठाए हैं, जिनसे निराशा के इस माहौल में आशा की किरणें जग जाएं। जहां कांग्रेस के बड़े नेता आज भी सिर्फ बातें करते हैं गरीबी हटाने की, मोदी बातें करते हैं संपन्नता और समृद्धि की। ऐसी बातें करके उन्होंने जनता के सामने एक नया आर्थिक सपना रखने का काम किया है, जो बहुत सुनहरा लगता है लोगों को।
मोदी के विरोधियों ने कोशिश की है उनको सांप्रदायिकता के काले रंग में रंग डालने की, लेकिन अभी तक यह रंग उन पर टिका नहीं है। हम जैसे राजनीतिक पंडितों को सोचना चाहिए कि इतने बदनाम राजनेता पर हिटलर होने के इल्जाम,फासीवादी होने के इल्जाम टिक क्यों नहीं रहे हैं। लेकिन हम उलझे रहे हैं बेकार बातों में, जिनसे जनता को कोई मतलब ही नहीं।